प्रस्तावना
भारत में दंड विधि का उद्देश्य केवल अपराधी को दंडित करना ही नहीं है, बल्कि न्याय के सिद्धांतों को संतुलित रखना भी है। यदि किसी अपराधी को एक ही घटना या कृत्य के लिए बार-बार अलग-अलग सजाएँ दी जाएँ तो यह न्याय की भावना के विपरीत होगा। इसी समस्या का समाधान भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की Section 9 BNS में दिया गया है।
यह धारा हमें बताती है कि यदि कोई अपराध कई हिस्सों से मिलकर बना हो, और प्रत्येक हिस्सा अपने-आप में अपराध हो, तो अपराधी को हर हिस्से के लिए अलग-अलग दंड नहीं मिलेगा। उसे केवल समग्र कृत्य के लिए ही सज़ा दी जाएगी।
- 1 Section 9 BNS का मुख्य प्रावधान
- 2 उदाहरण (Illustrations) of section 9 BNS
- 3 Section 9 BNS का औचित्य (Rationale)
- 4 न्यायालयीन दृष्टिकोण
- 5 Section 9 BNS और IPC का अंतर
- 6 व्यावहारिक असर (Practical Impact)
- 7 संभावित समस्याएँ
- 8 संबंधित केस-लॉ (संक्षेप में समझाया गया)
- 9 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
- 10 निष्कर्ष
Section 9 BNS का मुख्य प्रावधान
बिंदुवार समझें:
- एक कृत्य – कई अपराध
- यदि कोई कार्य कई हिस्सों से मिलकर बना है, और हर हिस्सा अपने आप में अपराध है, तो अभियुक्त को केवल एक सजा दी जाएगी।
- एक कृत्य – अलग-अलग कानूनी परिभाषाएँ
- कभी-कभी एक ही कृत्य विभिन्न धाराओं या कानूनों की अलग-अलग परिभाषाओं में आता है। ऐसी स्थिति में भी अभियुक्त को केवल इतनी ही सजा दी जा सकती है जितनी किसी एक अपराध के लिए अधिकतम निर्धारित है।
- कई छोटे कार्य – एक बड़ा अपराध
- यदि कई कार्य मिलकर एक नया, भिन्न अपराध बनाते हैं, तो अभियुक्त को दंड मिलेगा, लेकिन कुल दंड इतना नहीं होगा कि वह किसी एक अपराध की अधिकतम सजा से अधिक हो जाए।
उदाहरण (Illustrations) of section 9 BNS
- उदाहरण 1:
मान लीजिए A ने B को लाठी से 40 बार मारा। प्रत्येक वार “चोट पहुँचाने” का अपराध है। लेकिन A को 40 सजाएँ नहीं मिलेंगी। उसे केवल पूरी मारपीट की घटना के लिए एक ही सजा मिलेगी। - उदाहरण 2:
यदि मारपीट के बीच कोई तीसरा व्यक्ति C बीच-बचाव करने आया और A ने उसे भी जानबूझकर चोट पहुँचाई, तो यह C के साथ एक अलग अपराध होगा। यहाँ A को दो सजाएँ मिलेंगी — एक B को चोट पहुँचाने के लिए और दूसरी C को मारने के लिए।
Reat this : – Section 8 BNS Amount of fine default of payment of fine etc.
Section 9 BNS का औचित्य (Rationale)
- अत्यधिक दंड से बचाव – ताकि अभियुक्त को न्यायालय अत्यधिक वर्षों की कैद या जुर्माने से न दंडित करे।
- न्याय का संतुलन – अपराध और सजा के बीच उचित अनुपात बना रहे।
- न्यायपालिका का विवेक – अदालत यह तय कर सकती है कि किस सीमा तक दंड उचित है।
न्यायालयीन दृष्टिकोण
1. सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि यदि किसी एक कृत्य के लिए अलग-अलग धाराएँ लगती हैं तो अभियुक्त दोषी ठहराया जा सकता है, लेकिन सजा देते समय धारा 71 IPC (अब Section 9 BNS) लागू होगी।
2. उच्च न्यायालयों के फैसले
राज्य स्तरीय न्यायालयों ने भी माना है कि “डबल पनिशमेंट” (एक ही घटना के लिए दोहरा दंड) न्याय के विरुद्ध है।
3. सिद्धांत
- अभियुक्त को डबल जेपर्डी (Double Jeopardy) से बचाना।
- दंड का अनुपातिक (Proportionate) होना।
Section 9 BNS और IPC का अंतर
- IPC धारा 71 पहले से यही सिद्धांत देती थी।
- BNS ने उसी सिद्धांत को आधुनिक कानून में शामिल किया है।
- अंतर केवल यह है कि भाषा सरल की गई है और इसे नए संदर्भों के अनुसार ढाला गया है।
व्यावहारिक असर (Practical Impact)
- पुलिस और अभियोजन को चार्जशीट बनाते समय यह देखना होगा कि कहीं एक ही घटना के लिए कई धाराएँ तो नहीं लगा दी गईं।
- अदालतों को सजा देते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि कुल दंड किसी एक अपराध की अधिकतम सीमा से अधिक न हो।
- अभियुक्त को यह भरोसा मिलेगा कि उसे एक ही घटना के लिए बार-बार दंडित नहीं किया जाएगा।
संभावित समस्याएँ
- कभी-कभी यह तय करना कठिन हो जाता है कि कौन-सा कृत्य “एक ही घटना” का हिस्सा है और कौन-सा अलग अपराध है।
- यदि विशेष कानून (Special Acts) भी लागू हों, तो यह स्पष्ट नहीं रहता कि सीमा किस प्रकार लागू होगी।
- अभियोजन द्वारा कई बार धारा-दर-धारा जोड़कर आरोप लगाने से भ्रम पैदा हो सकता है।
संबंधित केस-लॉ (संक्षेप में समझाया गया)
- Baliram बनाम महाराष्ट्र राज्य – एक ही रिश्वत की घटना पर भ्रष्टाचार अधिनियम की अलग-अलग धाराएँ लगाई गईं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोषसिद्धि कई धाराओं में हो सकती है, लेकिन सजा केवल एक ही घटना के अनुसार दी जाएगी।
- Sangeetaben Patel बनाम गुजरात राज्य – अदालत ने माना कि यदि एक ही कृत्य अलग-अलग धाराओं में आता है, तो भी सजा IPC 71 (अब Section 9 BNS) की सीमा के भीतर रहनी चाहिए।
- अन्य हाई कोर्ट फैसले – लगातार यह दोहराया गया कि न्यायालय को सजा निर्धारण में संयम बरतना होगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. क्या किसी अपराधी को एक ही अपराध के लिए अलग-अलग सजाएँ दी जा सकती हैं?
नहीं। Section 9 BNS के अनुसार ऐसा नहीं किया जा सकता।
Q2. अगर एक ही घटना कई धाराओं में आती है तो क्या होगा?
अभियुक्त दोषसिद्ध हो सकता है, लेकिन सजा केवल एक अपराध की अधिकतम सीमा तक ही दी जाएगी।
Q3. क्या Section 9 BNS डबल जेपर्डी के सिद्धांत से जुड़ी है?
हाँ, यह संविधान के अनुच्छेद 20(2) से मेल खाती है जो “एक अपराध के लिए दो बार सजा” से बचाव करता है।
Q4. क्या हर मामले में अदालत को यह धारा लागू करनी होगी?
हाँ, जब भी यह सवाल उठे कि एक ही कृत्य के लिए कई अपराध बनते हैं।
Q5. क्या विशेष कानूनों (जैसे भ्रष्टाचार अधिनियम) पर भी Section 9 BNS लागू होगी?
हाँ, जब तक कि विशेष कानून में अलग से कोई स्पष्ट प्रावधान न हो।
निष्कर्ष
Section 9 BNS, भारतीय न्याय संहिता 2023 का एक संतुलित प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त को एक ही अपराध के लिए बार-बार सजा न मिले। यह न्यायपालिका को विवेकपूर्ण तरीके से दंड तय करने का अधिकार देता है और अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा करता है।
इस धारा से न्यायिक प्रणाली में समानता, संतुलन और उचित दंड की परंपरा कायम रहती है।
1 thought on “Section 9 BNS Limit of punishment of offence made up of several offences.”