Section 8 BNS Amount of fine default of payment of fine etc.

प्रस्तावना

भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 ने भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 को प्रतिस्थापित कर दिया है। इसमें दंड व्यवस्था को अधिक स्पष्ट, सुसंगत और आधुनिक बनाने का प्रयास किया गया है। विशेषकर Section 8 BNS अपराधियों पर लगाए गए जुर्माने (Fine) और उसकी अदायगी न होने की स्थिति में दंडात्मक परिणाम को निर्धारित करती है।

यह धारा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय दंड प्रणाली में केवल कारावास ही नहीं बल्कि जुर्माना और सामुदायिक सेवा (Community Service) भी दंड के रूप में स्वीकार किए गए हैं।

Section 8 BNS का उद्देश्य

Section 8 BNS का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि—

  1. जुर्माना एक उचित सीमा में रहे और यह अत्यधिक न हो।
  2. अदायगी न होने पर अपराधी को अतिरिक्त दंड भुगतना पड़े।
  3. अदालत को यह विवेकाधिकार मिले कि अपराध की प्रकृति और अपराधी की स्थिति के अनुसार जुर्माना और डिफॉल्ट इम्प्रिज़नमेंट (Default Imprisonment) निर्धारित कर सके।

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Section 8 BNS का प्रावधान (Provision of Section 8 BNS)

अब हम प्रत्येक उपधारा (Sub-Section) को क्रमवार समझते हैं:

Section 8 BNS 1 जुर्माने की अधिकतम सीमा

“जब किसी अपराध के लिए जुर्माने की अधिकतम राशि निर्धारित नहीं की गई है, तो वह राशि असीमित होगी, परंतु अत्यधिक नहीं होनी चाहिए।”

Section 8 BNS
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व्याख्या

  • अदालत को यह स्वतंत्रता है कि वह अपराध की गंभीरता और परिस्थितियों को देखते हुए जुर्माना निर्धारित करे
  • परंतु यह जुर्माना मनमाना या असंगत नहीं हो सकता।

Section 8 BNS 2 जुर्माने की अदायगी न होने पर कारावास

अदालत अपराधी को यह निर्देश दे सकती है कि—

  • यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दंडनीय है, और जुर्माना नहीं चुकाया गया तो अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा।
  • यदि अपराध केवल जुर्माना या कारावास से दंडनीय है, और जुर्माना नहीं चुकाया गया तो भी अदालत कारावास का आदेश दे सकती है।

Section 8 BNS 3 अधिकतम अवधि का निर्धारण

यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दंडनीय है, तो डिफॉल्ट कारावास की अवधि अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि के एक-चौथाई (¼) से अधिक नहीं होगी।

Section 8 BNS 4 कारावास का स्वरूप

जुर्माना अदा न करने पर जो कारावास दिया जाएगा, वह उसी प्रकार का हो सकता है जैसा उस अपराध के लिए निर्धारित किया गया है (कठोर या साधारण कारावास)।

Section 8 BNS 5 साधारण कारावास की स्थिति

यदि अपराध केवल जुर्माना या सामुदायिक सेवा (Community Service) से दंडनीय है, तो अदायगी न होने की स्थिति में कारावास साधारण कारावास (Simple Imprisonment) होगा।

अधिकतम अवधि इस प्रकार होगी—

  • जब जुर्माना ₹5000 तक है → अधिकतम 2 माह
  • जब जुर्माना ₹10,000 तक है → अधिकतम 4 माह
  • अन्य किसी भी स्थिति में → अधिकतम 1 वर्ष

Section 8 BNS 6 जुर्माना चुकाने पर कारावास समाप्त

  • यदि अपराधी जुर्माना पूरी तरह चुका देता है, तो कारावास तुरंत समाप्त हो जाएगा।
  • यदि अपराधी जुर्माने का कोई अनुपातिक भाग चुका देता है, तो शेष अवधि के अनुसार कारावास भी घटा दिया जाएगा।

उदाहरण

  • यदि अपराधी पर ₹1000 का जुर्माना और 4 माह का कारावास तय है।
  • यदि वह ₹750 चुका देता है, तो एक माह के बाद उसे रिहा कर दिया जाएगा।
  • यदि वह ₹500 चुका देता है, तो दो माह बाद कारावास समाप्त हो जाएगा।

Section 8 BNS 7 जुर्माना वसूली की अवधि

  • जुर्माना 6 वर्षों तक वसूला जा सकता है।
  • यदि अपराधी को 6 वर्षों से अधिक कारावास की सजा मिली है, तो उस अवधि तक वसूली की जा सकती है।
  • अपराधी की मृत्यु होने पर भी उसकी संपत्ति जुर्माने की देनदार होगी।

संबंधित न्यायिक दृष्टांत (Case Laws)

  1. Shahejadkhan Mahebubkhan Pathan vs State of Gujarat (2012) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जुर्माना अपराध की प्रकृति और अपराधी की क्षमता के अनुरूप होना चाहिए।
  2. Palaniappa Gounder vs State of Tamil Nadu (1977) – यह निर्णय दिया गया कि अत्यधिक जुर्माना न्यायिक विवेक का दुरुपयोग माना जाएगा।
  3. State of Punjab vs Prem Sagar (2008) – अदालत ने कहा कि डिफॉल्ट कारावास (Default Imprisonment) को प्रत्यक्ष दंड नहीं बल्कि अदायगी सुनिश्चित करने का साधन माना जाना चाहिए।
  4. Hira Lal Hari Lal Bhagwati vs CBI (2003) – सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अपराधी की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर जुर्माना तय होना चाहिए।

Section 8 BNS और IPC (पुराना कानून) की तुलना

  • IPC धारा 63-70 में जुर्माने से संबंधित प्रावधान थे।
  • BNS ने इन प्रावधानों को एकीकृत और आधुनिक स्वरूप दिया है।
  • IPC में जुर्माने की अधिकतम सीमा अक्सर अस्पष्ट थी, जबकि BNS ने न्यायालय को विवेकाधिकार तो दिया है परंतु “अत्यधिक न हो” की बाध्यता भी रखी है।

Section 8 BNS का महत्व

  1. न्यायालय को विवेकाधिकार – अपराध और अपराधी की क्षमता को देखकर उपयुक्त जुर्माना निर्धारित कर सकते हैं।
  2. अत्यधिक दंड से सुरक्षा – यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि जुर्माना अनुचित और असंगत न हो।
  3. प्रभावी वसूली तंत्र – 6 वर्षों तक वसूली की अनुमति देने से यह सुनिश्चित होता है कि अपराधी जिम्मेदारी से बच न सके।
  4. अपराधी के अधिकारों की रक्षा – जुर्माने की अदायगी पर कारावास तुरंत समाप्त होने की व्यवस्था अपराधी के अधिकारों को सुरक्षित करती है।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. Section 8 BNS का मुख्य उद्देश्य क्या है?

👉 यह प्रावधान जुर्माने की राशि और उसकी अदायगी न होने पर अपराधी की जिम्मेदारी को निर्धारित करता है।

Q2. क्या अदालत मनमाना जुर्माना लगा सकती है?

👉 नहीं, जुर्माना अत्यधिक नहीं होना चाहिए और अपराध की गंभीरता व अपराधी की क्षमता के अनुसार होना चाहिए।

Q3. जुर्माना न चुकाने पर अधिकतम कारावास कितना हो सकता है?

👉 अपराध की अधिकतम कारावास अवधि के ¼ भाग से अधिक नहीं।

Q4. जुर्माना वसूली की अवधि कितनी है?

👉 6 वर्ष या अपराधी की कारावास अवधि जितनी लंबी हो, उतनी अवधि तक।

Q5. अपराधी की मृत्यु होने पर क्या जुर्माना समाप्त हो जाता है?

👉 नहीं, अपराधी की संपत्ति जुर्माने की देनदार बनी रहती है।

Q6. यदि जुर्माने का कुछ भाग चुका दिया जाए तो क्या कारावास कम होगा?

👉 हाँ, भुगतान की गई राशि के अनुपात में कारावास की अवधि कम हो जाएगी।

Q7. क्या सामुदायिक सेवा न करने पर भी कारावास हो सकता है?

👉 हाँ, धारा 8(5) के अनुसार डिफॉल्ट में साधारण कारावास दिया जाएगा।


निष्कर्ष

Section 8 BNS भारतीय न्याय संहिता का एक अत्यंत व्यावहारिक और संतुलित प्रावधान है। यह अदालत को अपराध की प्रकृति, अपराधी की आर्थिक स्थिति और सामाजिक प्रभाव को देखते हुए उचित जुर्माना निर्धारित करने का विवेकाधिकार देता है। साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि अदायगी न होने पर अपराधी जिम्मेदारी से बच न सके और उसे अतिरिक्त कारावास भुगतना पड़े।

यह धारा भारतीय दंड व्यवस्था को और अधिक न्यायपूर्ण, पारदर्शी और प्रभावी बनाती है।

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