Section 6 BNS (भारतीय न्याय संहिता, 2023): दण्ड की अवधि का भिन्नांक (Fractions of Terms of Punishment)

Introduction (परिचय) of Section 6 BNS

भारतीय आपराधिक विधि में दण्ड का निर्धारण केवल अपराध की प्रकृति और गंभीरता पर ही निर्भर नहीं करता, बल्कि कई बार दण्ड की गणना (Calculation) भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विशेष रूप से, जब किसी आरोपी को दण्ड की अवधि के भिन्नांक (Fractions) के आधार पर राहत या सख्ती दी जाती है, तब यह स्पष्ट होना आवश्यक है कि “आजीवन कारावास” को किस अवधि के बराबर माना जाएगा।

Know This :- Section 5 BNS Bharatiya Nyaya Sanhita 2023 Commutation of Sentence

इसी प्रश्न को स्पष्ट करने के लिए भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की Section 6 BNS लायी गयी है। इसमें यह घोषित किया गया है कि यदि अन्यथा न कहा गया हो तो आजीवन कारावास को 20 वर्ष का कारावास माना जाएगा।

यह प्रावधान न केवल सज़ा के निर्धारण में स्पष्टता लाता है, बल्कि न्यायालय और कार्यपालिका दोनों को दिशा प्रदान करता है।

Section 6 BNS का मूल पाठ

Section 6 BNS: दण्ड की अवधि का भिन्नांक (Fractions of Terms of Punishment)
“दण्ड की अवधि के भिन्नांकों की गणना करते समय, आजीवन कारावास को बीस वर्ष के कारावास के बराबर माना जाएगा, जब तक अन्यथा उपबंधित न हो।”

 Section 6 BNS
www.nayakanoon.com

Section 6 BNS का विधिक महत्व

  1. स्पष्टता प्रदान करना – कई बार दण्डों के भिन्नांक जैसे ½, ⅓, ¼ की गणना करनी होती है। इस स्थिति में आजीवन कारावास की अवधि को मानक बनाना आवश्यक होता है।
  2. आजीवन कारावास की व्याख्या – सामान्यतः “आजीवन कारावास” का अर्थ दोषी की पूरी जीवन अवधि तक कैद होता है। परंतु, जब इसे भिन्नांकों में बाँटना हो तो इसे 20 वर्ष माना जाएगा।
  3. न्यायालय के लिए मार्गदर्शन – इस धारा से न्यायालयों को यह स्पष्टता मिलती है कि उन्हें गणना किस आधार पर करनी है।

आजीवन कारावास (Life Imprisonment) का विधिक स्वरूप

  • आजीवन कारावास का सामान्य अर्थ है कि दोषी अपने पूरे जीवनकाल तक जेल में रहेगा।
  • परंतु भारतीय विधि और न्यायिक दृष्टांतों ने कई बार यह प्रश्न उठाया है कि “आजीवन कारावास” का वास्तविक अर्थ क्या है – 14 वर्ष, 20 वर्ष या पूरी जीवन अवधि?
  • Section 6 BNS यह स्पष्ट करती है कि केवल गणना के उद्देश्य से इसे 20 वर्ष माना जाएगा, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि दोषी स्वतः 20 वर्ष के बाद मुक्त हो जाएगा।

महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टांत (Case Laws)

1. गोपीनाथ घोष बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1984 AIR 237, SC)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “आजीवन कारावास” का अर्थ है दोषी का पूरा जीवन, जब तक कि राज्य सरकार क्षमा, दया या रूपान्तरण द्वारा इसे कम न करे।

2. लक्ष्मण नायर बनाम राज्य (1983 CrLJ 839, Kerala HC)

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गणना के उद्देश्य से आजीवन कारावास को 20 वर्ष माना जा सकता है, परन्तु इसका अर्थ स्वतः रिहाई नहीं है।

3. गोपीनाथ दास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2002 CrLJ 3630, SC)

कोर्ट ने पुनः दोहराया कि आजीवन कारावास की अवधि दोषी का सम्पूर्ण जीवन है, किन्तु विधिक गणना हेतु इसे 20 वर्ष मानना उचित है।

4. स्वामी श्रीराम बनाम राज्य (AIR 2000 SC 2522)

यहाँ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “14 वर्ष” की अवधारणा केवल दया या दण्ड रूपान्तरण के मामलों में है, न कि स्वतः रिहाई का अधिकार।

5. Union of India v. V. Sriharan @ Murugan (2016)

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि आजीवन कारावास का अर्थ दोषी का शेष जीवन है। परन्तु यदि गणना की आवश्यकता हो तो इसे 20 वर्ष के बराबर माना जा सकता है।

IPC (पुराना कानून) और BNS (नया कानून) में तुलना

विषयIPC में स्थितिBNS में स्थिति
आजीवन कारावासइसे “14 वर्ष” या “20 वर्ष” मानने को लेकर विवाद थाSection 6 BNS में स्पष्ट कर दिया गया – गणना के लिए 20 वर्ष
भिन्नांकों की गणनाअस्पष्टता रहती थी, न्यायालय पर निर्भरSection 6 BNS ने निश्चित आधार दिया
रिहाई का अधिकारस्वतः रिहाई नहीं, केवल सरकार की दया सेसमान स्थिति, पर गणना में स्पष्टता

व्यावहारिक महत्व

  1. जुर्माने एवं अन्य दण्डों में – कई बार सज़ा का भिन्नांक तय करना पड़ता है, जैसे – आधी सज़ा भुगतने के बाद रिहाई का प्रावधान। इस स्थिति में “आजीवन कारावास” को 20 वर्ष मानकर गणना की जाएगी।
  2. दया और क्षमा याचिका – राज्य सरकार जब किसी कैदी की दया याचिका पर विचार करती है तो वह इस गणना के आधार पर राहत तय कर सकती है।
  3. न्यायालयी निर्णयों मेंSection 6 BNS न्यायालय को गणना के लिए एक निश्चित मापदंड उपलब्ध कराती है।

Section 6 BNS की आलोचना एवं चुनौतियाँ

  1. जीवन भर का अर्थ सीमित करना – कुछ विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि इसे 20 वर्ष मानना “आजीवन” की परिभाषा को सीमित कर देता है।
  2. अस्पष्टता बनी रहती है – दोषी को यह गलतफहमी हो सकती है कि वह 20 वर्ष के बाद स्वतः रिहा हो जाएगा।
  3. राज्य सरकार की शक्तिSection 6 BNS केवल गणना के लिए है, पर रिहाई का निर्णय अंततः सरकार पर निर्भर है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्र.1. Section 6 BNS क्या कहती है?
उत्तर: दण्ड की अवधि के भिन्नांकों की गणना करते समय आजीवन कारावास को 20 वर्ष माना जाएगा, जब तक अन्यथा न कहा गया हो।

प्र.2. क्या आजीवन कारावास हमेशा 20 वर्ष का ही होगा?
उत्तर: नहीं। वास्तविक अर्थ में आजीवन कारावास पूरे जीवन का होता है। 20 वर्ष केवल गणना के उद्देश्य से माना जाएगा।

प्र.3. क्या दोषी 20 वर्ष के बाद स्वतः रिहा हो जाएगा?
उत्तर: नहीं। स्वतः रिहाई का अधिकार नहीं है। केवल राज्य सरकार की दया या रूपान्तरण शक्ति के आधार पर ही रिहाई हो सकती है।

प्र.4. 14 वर्ष की अवधारणा कहाँ से आयी थी?
उत्तर: यह राज्य सरकारों की दया नीति (Remission Policy) से सम्बंधित थी, न कि कानून से। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि “14 वर्ष” का अर्थ स्वतः रिहाई नहीं है।

प्र.5. इस धारा का व्यावहारिक उपयोग कहाँ होता है?
उत्तर: जब किसी अपराधी को सज़ा का आधा या एक-तिहाई हिस्सा भुगतने के बाद राहत देनी हो, तब “आजीवन कारावास” को 20 वर्ष मानकर गणना की जाती है।

प्र.6. क्या यह प्रावधान IPC में भी था?
उत्तर: हाँ, IPC और CrPC में भी न्यायालयों ने इसे मान्यता दी थी, पर BNS ने इसे विधिक रूप से स्पष्ट कर दिया है।

निष्कर्ष

Section 6 BNS, भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 आपराधिक न्याय व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह दण्ड की अवधि के भिन्नांकों की गणना में स्पष्टता प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि “आजीवन कारावास” को गणना के उद्देश्य से 20 वर्ष माना जाए।

हालाँकि, यह प्रावधान स्वतः रिहाई का अधिकार नहीं देता। दोषी की वास्तविक कैद उसके जीवन की शेष अवधि तक हो सकती है, जब तक कि राज्य सरकार क्षमा या दया का उपयोग न करे।

न्यायिक दृष्टांतों ने भी बार-बार यह स्पष्ट किया है कि “आजीवन” का अर्थ जीवन भर है। परन्तु विधिक गणना की सुविधा के लिए 20 वर्ष का मानक न्याय व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और निश्चित बनाता है।

इस प्रकार, Section 6 BNS भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक संगठित, न्यायोचित और व्यावहारिक बनाती है।

1 thought on “Section 6 BNS (भारतीय न्याय संहिता, 2023): दण्ड की अवधि का भिन्नांक (Fractions of Terms of Punishment)”

Leave a comment