- 1 Introduction of Section 5 BNS (परिचय)
- 2 Section 5 BNS का मूल पाठ
- 3 दण्ड के रूपान्तरण का अर्थ
- 4 क्षमा (Pardon), दया (Remission), स्थगन (Suspension) और रूपान्तरण (Commutation) में अंतर
- 5 Section 5 BNS के अन्तर्गत रूपान्तरण की शक्तियाँ
- 6 “उचित सरकार” कौन है?
- 7 न्यायिक व्याख्याएँ एवं प्रमुख केस लॉ
- 8 Section 5 BNS का महत्व
- 9 IPC से तुलना (पुराना कानून बनाम नया कानून)
- 10 व्यावहारिक प्रभाव
- 11 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- 12 निष्कर्ष
Introduction of Section 5 BNS (परिचय)
दण्ड निर्धारण (Sentencing) आपराधिक न्याय प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण चरण है। यह केवल अपराधी का भविष्य तय नहीं करता बल्कि न्याय और दया (Justice & Mercy) के बीच संतुलन भी स्थापित करता है।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) ने भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की जगह ली है। इसमें न्याय व्यवस्था को आधुनिक बनाने के लिए कई नए प्रावधान लाए गए हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण प्रावधान है Section 5 BNS – दण्ड का रूपान्तरण।
यह प्रावधान सरकार को यह शक्ति देता है कि वह अपराधी की सज़ा को किसी कम कठोर दण्ड में बदल सके। यह न्याय व्यवस्था में सुधारात्मक दृष्टिकोण (Reformative Justice) और कार्यपालिका (Executive) के विवेकाधिकार (Discretion) को महत्व देता है।
Section 5 BNS का मूल पाठ
Section 5 BNS: दण्ड का रूपान्तरण
“उचित सरकार अपराधी की सहमति के बिना, इस संहिता के अन्तर्गत किसी भी दण्ड को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 474 के अनुसार किसी अन्य दण्ड में रूपान्तरित कर सकती है।”
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स्पष्टीकरण: इस धारा के प्रयोजनार्थ “उचित सरकार” का अर्थ है––
(a) जहाँ दण्ड मृत्यु-दण्ड है अथवा ऐसा अपराध है जो ऐसे किसी विधि के विरुद्ध है जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है – वहाँ केंद्र सरकार; तथा
(b) जहाँ दण्ड (चाहे मृत्यु-दण्ड हो या न हो) ऐसे अपराध के लिए है जो ऐसे किसी विधि के विरुद्ध है जिस पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है – वहाँ उस राज्य की राज्य सरकार, जिसके भीतर अपराधी को दण्डित किया गया है।
दण्ड के रूपान्तरण का अर्थ
- रूपान्तरण (Commutation) का अर्थ है किसी कठोर दण्ड को हल्के दण्ड में बदलना।
- इससे अपराध की दोषसिद्धि (Conviction) समाप्त नहीं होती, केवल दण्ड की कठोरता कम की जाती है।
उदाहरण:
- मृत्यु-दण्ड → आजीवन कारावास में बदला जा सकता है।
- आजीवन कारावास → 14 वर्ष या 20 वर्ष के कारावास में बदला जा सकता है।
- कठोर कारावास (Rigorous Imprisonment) → साधारण कारावास (Simple Imprisonment) में बदला जा सकता है।
- जुर्माना (Fine) → कम किया जा सकता है।
क्षमा (Pardon), दया (Remission), स्थगन (Suspension) और रूपान्तरण (Commutation) में अंतर
शब्द | अर्थ | शक्ति किसके पास | प्रभाव |
---|---|---|---|
क्षमा (Pardon) | अपराधी को पूर्णतः अपराध से मुक्त करना | राष्ट्रपति (अनु. 72) / राज्यपाल (अनु. 161) | दोषसिद्धि और दण्ड दोनों समाप्त |
दया (Remission) | दण्ड की अवधि को कम करना | सरकार | सज़ा बनी रहती है पर अवधि घट जाती है |
स्थगन (Suspension) | सज़ा के क्रियान्वयन को अस्थायी रूप से रोकना | न्यायालय / सरकार | सज़ा अस्थायी रूप से टल जाती है |
रूपान्तरण (Commutation) | कठोर दण्ड को हल्के दण्ड में बदलना | सरकार | अपराध बना रहता है पर दण्ड हल्का हो जाता है |
Section 5 BNS के अन्तर्गत रूपान्तरण की शक्तियाँ
Section 5 BNS को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 474 के साथ पढ़ा जाता है। इसके अनुसार:
- मृत्यु-दण्ड → आजीवन कारावास में बदला जा सकता है।
- आजीवन कारावास → किसी निश्चित अवधि (20 वर्ष तक) के कारावास में बदला जा सकता है।
- कठोर कारावास → साधारण कारावास में बदला जा सकता है।
- जुर्माना → घटाया जा सकता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके लिए अपराधी की सहमति आवश्यक नहीं है।
“उचित सरकार” कौन है?
- केंद्र सरकार
- मृत्यु-दण्ड के मामले में
- ऐसे अपराध जिन पर संघ की कार्यपालिका शक्ति लागू होती है (जैसे – रक्षा, विदेश नीति, केंद्रीय कानून)
- राज्य सरकार
- राज्य के विषयों से जुड़े अपराध (जैसे – पुलिस, जेल, कानून-व्यवस्था)
- उस राज्य की अदालत द्वारा दिए गए दण्ड
यह व्यवस्था भारत के संघीय ढाँचे (Federal Structure) को संतुलित करती है।
न्यायिक व्याख्याएँ एवं प्रमुख केस लॉ
1. Maru Ram v. Union of India (1981)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्षमा, रूपान्तरण जैसी शक्तियाँ कार्यपालिका (Executive) की होती हैं, परंतु इन्हें मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता।
2. Kehar Singh v. Union of India (1989)
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति या राज्यपाल की क्षमा/रूपान्तरण शक्ति न्यायिक पुनर्विचार के अधीन नहीं है, पर यदि यह शक्ति दुरुपयोग या दुर्भावना से प्रयोग की जाए तो इसकी जाँच की जा सकती है।
3. Epuru Sudhakar v. Government of A.P. (2006)
कोर्ट ने कहा कि दण्ड रूपान्तरण की शक्ति राजनीतिक लाभ या दुर्भावना से प्रयोग नहीं की जा सकती।
4. Union of India v. V. Sriharan @ Murugan (2016)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालय द्वारा दी गई सज़ा को मनमाने ढंग से बदला नहीं जा सकता, सरकार की शक्ति भी विधि की सीमाओं में है।
5. State of Haryana v. Jagdish (2010)
कोर्ट ने दोहराया कि “उचित सरकार” का निर्धारण इस आधार पर होगा कि अपराध संघीय या राज्यीय विषय से सम्बन्धित है।
Section 5 BNS का महत्व
- सुधारात्मक दृष्टिकोण – अपराधी के सुधार पर ध्यान देता है।
- मानवीय आधार – वृद्धावस्था, बीमारी, या असाधारण सुधार के मामलों में राहत मिलती है।
- विवेकाधिकार – सरकार को परिस्थिति अनुसार दण्ड बदलने की शक्ति देता है।
- न्याय एवं दया का संतुलन – न्यायालय दण्ड देता है, पर सरकार दया दिखा सकती है।
IPC से तुलना (पुराना कानून बनाम नया कानून)
- IPC धारा 55 → आजीवन कारावास को 14 वर्ष तक की अवधि में बदला जा सकता था।
- CrPC धारा 433 → सरकार को मृत्यु-दण्ड, आजीवन कारावास और कठोर कारावास बदलने की शक्ति थी।
- Section 5 BNS एवं BNSS धारा 474 → इन प्रावधानों को आधुनिक और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया गया है।
व्यावहारिक प्रभाव
- यदि किसी को हत्या के लिए मृत्यु-दण्ड मिला है, तो सरकार इसे आजीवन कारावास में बदल सकती है।
- यदि कोई अपराधी 30 वर्ष से जेल में है, तो राज्य सरकार उसकी सज़ा को 20 वर्ष की निर्धारित अवधि में बदल सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्र.1. Section 5 BNS के तहत दण्ड रूपान्तरण क्या है?
उत्तर: कठोर दण्ड को हल्के दण्ड में बदलना, जिसे सरकार अपराधी की सहमति के बिना कर सकती है।
प्र.2. भारत में मृत्यु-दण्ड को कौन रूपान्तरित कर सकता है?
उत्तर: केवल केंद्र सरकार के पास यह शक्ति है।
प्र.3. क्या रूपान्तरण और क्षमा एक ही हैं?
उत्तर: नहीं। क्षमा में अपराध पूरी तरह समाप्त हो जाता है, जबकि रूपान्तरण में केवल दण्ड बदलता है।
प्र.4. क्या न्यायालय दण्ड रूपान्तरण कर सकता है?
उत्तर: नहीं। यह शक्ति केवल कार्यपालिका (केंद्र/राज्य सरकार) के पास है।
प्र.5. रूपान्तरण और दया (Remission) में क्या अंतर है?
उत्तर: दया से सज़ा की अवधि घटती है, जबकि रूपान्तरण से दण्ड का प्रकार बदल जाता है।
प्र.6. क्या अपराधी की सहमति आवश्यक है?
उत्तर: नहीं। Section 5 BNS स्पष्ट रूप से कहती है कि सहमति आवश्यक नहीं है।
प्र.7. क्या इस शक्ति पर कोई सीमा है?
उत्तर: हाँ, यह शक्ति BNSS धारा 474 और संविधान के अधीन है। दुरुपयोग होने पर न्यायालय इसकी समीक्षा कर सकता है।
निष्कर्ष
Section 5 BNS (2023) भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में न्याय और दया के बीच संतुलन को स्थापित करती है। यह प्रावधान सरकार को यह अवसर देता है कि विशेष परिस्थितियों में अपराधी को कठोर सज़ा से राहत मिल सके।
यह न केवल सुधारात्मक न्याय की अवधारणा को मजबूत करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्यायालय के निर्णय के बाद भी मानवीय दृष्टिकोण बना रहे।
पुराने IPC प्रावधानों की तुलना में, Section 5 BNS अधिक स्पष्ट, आधुनिक और संतुलित है, जो भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को और भी मानवीय एवं न्यायसंगत बनाती है।
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