Section 32 BNS : धमकी से विवश होकर किया गया कार्य
भारत के नए भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) में Section 32 BNS एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह प्रावधान उन परिस्थितियों से जुड़ा हुआ है जब कोई व्यक्ति किसी गंभीर धमकी, विशेषकर तात्कालिक मृत्यु (instant death) के भय के कारण, कोई अपराध करने पर मजबूर हो जाता है।
धारा 32 का मुख्य सिद्धांत यह है कि –
“यदि कोई व्यक्ति, हत्या (murder) और राज्य के विरुद्ध मृत्युदंड से दंडनीय अपराधों को छोड़कर, किसी भी अन्य अपराध को इस कारण करता है कि उसे धमकी दी गई थी और धमकी ऐसी थी कि उसे तत्काल मृत्यु का भय था, तो वह व्यक्ति अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा।”
- 1 Section 32 BNS का शाब्दिक प्रावधान
- 2 Section 32 BNS का उद्देश्य
- 3 Section 32 BNS की विशेषताएँ
- 4 Section 32 BNS की व्याख्या और स्पष्टीकरण
- 5 Section 32 BNS से संबंधित उदाहरण (Illustrations)
- 6 Section 32 BNS और भारतीय दंड संहिता (IPC) से तुलना
- 7 न्यायालय के दृष्टिकोण (Case Laws)
- 8 Section 32 BNS कानूनी टिप्पणी
- 9 Section 32 BNS पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
- 10 निष्कर्ष
Section 32 BNS का शाब्दिक प्रावधान
Section 32 BNS इस प्रकार कहती है –
“हत्या और ऐसे अपराध जो राज्य के विरुद्ध हों तथा जिनकी सजा मृत्युदंड हो, को छोड़कर, कोई भी अपराध उस व्यक्ति द्वारा नहीं माना जाएगा जिसने उसे ऐसी धमकी के कारण किया हो, जो उस समय यह यथोचित आशंका उत्पन्न करती हो कि अन्यथा उसकी तत्काल मृत्यु होगी:
परंतु यह आवश्यक है कि उस व्यक्ति ने अपनी इच्छा से अथवा तात्कालिक मृत्यु से कम किसी हानि की आशंका से, स्वयं को ऐसी परिस्थिति में न डाला हो जिसके कारण वह विवश हुआ।”
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Section 32 BNS का उद्देश्य
- यह धारा न्याय और मानवता के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर बनाई गई है।
- कानून यह मानता है कि यदि किसी व्यक्ति के पास विकल्प ही नहीं बचता और वह अपनी जान बचाने के लिए किसी अपराध को करने पर मजबूर होता है, तो उसे अपराधी मानना अन्यायपूर्ण होगा।
- साथ ही, कानून यह भी ध्यान रखता है कि कोई व्यक्ति केवल छोटी-मोटी धमकियों या स्वयं की गलती से बने हालातों का बहाना बनाकर अपराध करने से बच न निकले।
Section 32 BNS की विशेषताएँ
- हत्या एवं राज्य-विरोधी अपराध का अपवाद
- यदि धमकी देकर किसी से हत्या कराई जाए, तो यह धारा लागू नहीं होगी।
- इसी तरह यदि धमकी के कारण कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध अपराध करता है, जिसकी सजा मृत्युदंड है, तो उसे माफी नहीं मिलेगी।
- धमकी का स्वरूप (Nature of Threat)
- धमकी इतनी गंभीर होनी चाहिए कि व्यक्ति को अपनी तत्काल मृत्यु का भय हो।
- केवल चोट, पिटाई, या आर्थिक हानि का भय इस धारा के अंतर्गत सुरक्षा नहीं देता।
- स्वेच्छा से परिस्थिति में प्रवेश
- यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से या मामूली खतरे के कारण अपराधियों के साथ जुड़ता है, तो उसे धारा 32 का लाभ नहीं मिलेगा।
Section 32 BNS की व्याख्या और स्पष्टीकरण
स्पष्टीकरण 1
यदि कोई व्यक्ति स्वयं की इच्छा से या मात्र पिटाई की धमकी के कारण डकैतों के गिरोह में शामिल हो जाता है, तो वह यह दावा नहीं कर सकता कि उसके द्वारा किया गया अपराध केवल धमकी के कारण किया गया था।
स्पष्टीकरण 2
यदि किसी व्यक्ति को डकैत पकड़ लेते हैं और उसे तत्काल हत्या की धमकी देकर किसी अपराध को करने के लिए विवश करते हैं, तो वह Section 32 BNS के अंतर्गत निर्दोष माना जाएगा।
उदाहरण: एक लोहार को डकैत पकड़ते हैं और तत्काल मौत की धमकी देकर उससे मकान का दरवाज़ा तुड़वाते हैं। ऐसी स्थिति में लोहार पर अपराध का दोष नहीं लगाया जाएगा।
Section 32 BNS से संबंधित उदाहरण (Illustrations)
- उदाहरण 1
- राम को डकैत पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि यदि उसने दरवाज़ा न तोड़ा तो उसे तुरंत गोली मार दी जाएगी।
- राम अपनी जान बचाने के लिए दरवाज़ा तोड़ता है।
- यह अपराध राम का नहीं, बल्कि डकैतों का माना जाएगा।
- उदाहरण 2
- मोहन को अपराधियों ने कहा कि यदि उसने किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या नहीं की, तो उसे मार दिया जाएगा।
- मोहन यदि हत्या करता है, तो वह Section 32 BNS का लाभ नहीं ले पाएगा, क्योंकि हत्या इस धारा से बाहर है।
Section 32 BNS और भारतीय दंड संहिता (IPC) से तुलना
पुरानी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 94 और BNS की धारा 32 लगभग समान प्रावधान करती हैं।
- IPC में भी हत्या और राज्य-विरोधी अपराधों को छोड़कर धमकी से विवश व्यक्ति को अपराध से मुक्त रखा गया था।
- BNS ने इसे और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत किया है।
न्यायालय के दृष्टिकोण (Case Laws)
(1) Queen v. R. (1884)
इस केस में अदालत ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को तत्काल मृत्यु की धमकी देकर अपराध कराया गया है, तो वह दोषी नहीं होगा, सिवाय हत्या के मामलों के।
(2) State of Gujarat v. Kanaiyalal (AIR 1962 SC 305)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धमकी इतनी गंभीर होनी चाहिए कि व्यक्ति को लगे कि यदि वह तुरंत अपराध नहीं करेगा तो उसे मौत का सामना करना पड़ेगा।
(3) Om Prakash v. State of U.P. (1961)
इस केस में अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल मारपीट या चोट का डर धारा 32 (पूर्व में धारा 94 IPC) का आधार नहीं हो सकता।
Section 32 BNS कानूनी टिप्पणी
- यह धारा “मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति – आत्मरक्षा (self-preservation)” पर आधारित है।
- कानून यह स्वीकार करता है कि जीवन सबसे महत्वपूर्ण है और इंसान स्वाभाविक रूप से अपनी जान बचाने के लिए कोई भी कदम उठा सकता है।
- लेकिन, हत्या जैसी गंभीर अपराधों को इससे बाहर रखा गया है क्योंकि कानून यह मानता है कि किसी निर्दोष की हत्या को किसी भी परिस्थिति में न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
Section 32 BNS पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: क्या हर प्रकार की धमकी पर यह धारा लागू होती है?
उत्तर: नहीं। केवल तात्कालिक मृत्यु (instant death) की धमकी पर ही यह धारा लागू होती है।
प्रश्न 2: क्या हत्या करने पर भी यह धारा सुरक्षा देती है?
उत्तर: नहीं। हत्या और राज्य के विरुद्ध मृत्युदंड योग्य अपराध इस धारा से बाहर हैं।
प्रश्न 3: यदि कोई व्यक्ति पिटाई या चोट से डरकर अपराध करता है तो क्या उसे धारा 32 का लाभ मिलेगा?
उत्तर: नहीं। केवल मौत की धमकी ही मान्य है।
प्रश्न 4: यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपराधियों के साथ जुड़ जाता है और बाद में धमकी के कारण अपराध करता है तो क्या उसे छूट मिलेगी?
उत्तर: नहीं। स्वेच्छा से परिस्थिति में आने वाले व्यक्ति को यह छूट नहीं मिलेगी।
निष्कर्ष
Section 32 BNS भारतीय आपराधिक न्यायशास्त्र का एक संतुलित प्रावधान है।
- यह एक ओर मानव जीवन की वास्तविक परिस्थितियों और बाध्यताओं को ध्यान में रखता है,
- वहीं दूसरी ओर हत्या और गंभीर राज्यविरोधी अपराधों को इससे बाहर रखकर समाज के हितों की भी रक्षा करता है।
इस धारा का वास्तविक उद्देश्य यह है कि कानून व्यक्ति को उस अपराध का दोषी न माने, जिसे उसने सचमुच अपने प्राण बचाने के लिए करने पर विवश होकर किया हो।
लेखक की टिप्पणी:
Section 32 BNS हमें यह सिखाती है कि कानून केवल अपराध को ही नहीं देखता बल्कि अपराध के पीछे की परिस्थिति और विवशता को भी समझता है।
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