प्रस्तावना
भारतीय दंड कानून (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) का मूल सिद्धांत है कि किसी भी व्यक्ति को दंडित तभी किया जा सकता है जब उसके पास अपराध करने का मानसिक तत्व (mens rea) मौजूद हो। यदि कोई व्यक्ति अपने कार्य की प्रकृति और उसके परिणाम को समझ ही नहीं पा रहा, तो उसके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई अन्यायपूर्ण होगी। इसी आधार पर Section 22 BNS बनाया गया है, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ (unsound mind) व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान देता है।
- 1 Section 22 BNS का शाब्दिक पाठ
- 2 Section 22 BNS का उद्देश्य
- 3 मानसिक अस्वस्थता (Unsoundness of Mind) — क्या है?
- 4 Section 22 BNS के आवश्यक तत्व
- 5 McNaughton Rule और भारतीय कानून
- 6 प्रमाण-भार (Burden of Proof)
- 7 कल्पनिक उदाहरण (Illustrations)
- 8 प्रमुख न्यायिक निर्णय (Case Laws)
- 9 Section 22 BNS का व्यावहारिक महत्व
- 10 FAQs
- 11 निष्कर्ष
Section 22 BNS का शाब्दिक पाठ
“Nothing is an offence which is done by a person who, at the time of doing it, by reason of unsoundness of mind, is incapable of knowing the nature of the act, or that he is doing what is either wrong or contrary to law.”
सरल व्याख्या
यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है, लेकिन उस समय उसकी मानसिक स्थिति इतनी अस्वस्थ थी कि वह यह समझने में असमर्थ था कि:
- वह जो कर रहा है उसकी प्रकृति क्या है, या
- वह जो कर रहा है ग़लत है, या क़ानून के विरुद्ध है,
तो उसका वह कृत्य अपराध नहीं माना जाएगा।
Section 22 BNS का उद्देश्य
- अपराध में केवल शारीरिक कृत्य (actus reus) ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि मानसिक स्थिति (mens rea) भी आवश्यक है।
- मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति का दंड न केवल अन्याय है बल्कि दंड का उद्देश्य (सुधार, निवारण) भी पूरा नहीं करता।
- ऐसे व्यक्ति के लिए उपचार और सुरक्षा अधिक उपयुक्त साधन हैं।
मानसिक अस्वस्थता (Unsoundness of Mind) — क्या है?
“Unsoundness of mind” कोई चिकित्सीय परिभाषा नहीं है, बल्कि यह कानूनी संकल्पना (legal concept) है।
Medical Insanity बनाम Legal Insanity
- Medical Insanity (चिकित्सीय अस्वस्थता): डॉक्टर द्वारा किया गया मानसिक रोग का निदान (जैसे – शिज़ोफ्रेनिया, बाईपोलर, डिप्रेशन)।
- Legal Insanity (कानूनी अस्वस्थता): केवल वही मानसिक अवस्था जिसमें व्यक्ति अपराध करते समय अपनी क्रिया की प्रकृति या उसकी गलतता समझने में अक्षम हो।
नोट: सिर्फ मेडिकल डायग्नोसिस काफ़ी नहीं है, कोर्ट यह देखेगा कि अपराध करते समय मानसिक स्थिति क्या थी।
Section 22 BNS के आवश्यक तत्व
- व्यक्ति अपराध करते समय मानसिक रूप से अस्वस्थ था।
- उसकी मानसिक अस्वस्थता का कारण यह था कि वह अपने कृत्य की प्रकृति नहीं समझ पा रहा था।
- या उसे यह ज्ञान ही नहीं था कि उसका कार्य ग़लत है या क़ानून-विरुद्ध है।
McNaughton Rule और भारतीय कानून
भारतीय कानून में Section 22 BNS का आधार McNaughton Rule (1843, UK) है, जिसके अनुसार:
- यदि अपराध करते समय आरोपी यह नहीं समझ पाया कि वह क्या कर रहा है या यह कि उसका कार्य ग़लत है, तो वह आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं होगा।
प्रमाण-भार (Burden of Proof)
- भार अभियुक्त पर होता है कि वह यह साबित करे कि घटना के समय वह कानूनी रूप से अस्वस्थ था। (Evidence Act की धारा 105 लागू होती है)
- अभियोजन (Prosecution) को भी यह साबित करना पड़ता है कि आरोपी ने अपराध किया।
- अदालत मेडिकल साक्ष्य, व्यवहारिक साक्ष्य, और परिस्थितिजन्य साक्ष्य — सभी को देखकर निर्णय करती है।
कल्पनिक उदाहरण (Illustrations)
Illustration 1
राम शिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित है। उसे भ्रम होता है कि उसका भाई उसे मारने वाला है। उसी भय में वह अचानक भाई पर चाकू से हमला कर देता है। घटना के समय उसे यह ज्ञान ही नहीं था कि वह निर्दोष व्यक्ति को मार रहा है। ऐसे में Section 22 BNS का लाभ मिल सकता है।
Illustration 2
मोहन मानसिक रोग से पीड़ित है लेकिन उसने योजनाबद्ध तरीके से बैंक डकैती की और सबूत छुपाए। इस स्थिति में यह सिद्ध होता है कि वह अपने कार्य की प्रकृति और गलतता समझता था। ऐसे मामले में Section 22 BNS लागू नहीं होगा।
प्रमुख न्यायिक निर्णय (Case Laws)
- Hari Singh Gond v. State of Madhya Pradesh (2008):
सुप्रीम कोर्ट ने कहा — मेडिकल इंसैनिटी पर्याप्त नहीं, बल्कि लीगल इंसैनिटी साबित होनी चाहिए। - McNaughton Case (1843, UK):
इस केस ने वह मूल सिद्धांत दिया जिस पर आज भी भारतीय कानून आधारित है। - Bapu @ Gajraj Singh v. State of Rajasthan (2007):
अदालत ने कहा कि केवल पारिवारिक गवाहों का कहना कि आरोपी मानसिक रोगी था, पर्याप्त नहीं; ठोस साक्ष्य आवश्यक हैं। - Surendra Mishra v. State of Jharkhand (2011):
मानसिक रोग का पुराना इतिहास दिखाना काफ़ी नहीं है, अपराध के समय की मानसिक स्थिति देखी जाएगी।
Section 22 BNS का व्यावहारिक महत्व
- कोर्ट मानसिक रोगियों को जेल के बजाय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में भेज सकती है।
- यह धारा समाज और अपराधी दोनों की सुरक्षा का संतुलन बनाए रखती है।
- अभियोजन को यह ध्यान रखना चाहिए कि आरोपी इस अपवाद का दुरुपयोग न करे।
FAQs
Q1. क्या सभी मानसिक रोगी Section 22 BNS का लाभ ले सकते हैं?
नहीं। केवल वही व्यक्ति जो अपराध करते समय अपनी क्रिया की प्रकृति और गलतता नहीं समझ पाया, वही लाभ ले सकता है।
Q2. क्या मेडिकल रिपोर्ट ही काफ़ी है?
नहीं। मेडिकल रिपोर्ट + घटना के समय का व्यवहार + गवाहों की गवाही सब मिलाकर देखा जाता है।
Q3. Section 22 BNS लागू होने पर क्या आरोपी तुरंत मुक्त हो जाएगा?
नहीं। अदालत उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में भर्ती करवाने का आदेश दे सकती है ताकि समाज सुरक्षित रहे।
Q4. क्या योजनाबद्ध अपराध में Section 22 BNS लागू हो सकता है?
नहीं। अगर आरोपी ने योजना और सोच-समझकर अपराध किया है, तो यह दिखाता है कि वह अपने कार्य को समझ रहा था।
निष्कर्ष
Section 22 BNS (Act of a person of unsound mind) न्याय व्यवस्था का एक संवेदनशील प्रावधान है। यह बताता है कि कानून केवल उन्हीं को दंडित करता है जो अपने कार्य को समझने और उसकी गलतता को जानने की स्थिति में हों।
लेकिन इसका लाभ केवल उन्हीं को मिलता है जो साक्ष्य के आधार पर सिद्ध कर पाते हैं कि अपराध के समय वे कानूनी रूप से अस्वस्थ थे।
यह प्रावधान मानवता और न्याय दोनों के अनुरूप है।
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