Section 19 BNS Act likely to cause harm, but done without criminal intent, and to prevent other harm.

परिचय of Section 19 BNS

भारतीय दंड संहिता (अब भारतीय न्याय संहिता – BNS) में अपराध के दायरे और उनकी व्याख्या को स्पष्ट करने के लिए कई विशेष प्रावधान दिए गए हैं। Section 19 BNS का महत्व इस दृष्टि से अत्यधिक है कि यह उन परिस्थितियों पर प्रकाश डालती है जहाँ किसी व्यक्ति का किया गया कार्य हानि पहुँचा सकता है, परंतु वह कार्य आपराधिक इरादे से नहीं, बल्कि अन्य बड़ी हानि को रोकने के उद्देश्य से किया जाता है।

यह धारा न्यायशास्त्र के उस सिद्धांत पर आधारित है कि कभी-कभी छोटी हानि सहन कर लेना बड़ी हानि को रोकने के लिए आवश्यक हो सकता है। परंतु शर्त यह है कि वह कार्य सद्भावना (Good Faith) में, बिना किसी आपराधिक अभिप्राय (Criminal Intention) के, और वास्तव में हानि को टालने के लिए किया गया हो।

धारा 19 BNS का प्रावधान ( Provision of Section 19 BNS )

मूल प्रावधान:

“Nothing is an offence merely by reason of its being done with the knowledge that it is likely to cause harm, if it be done without any criminal intention to cause harm, and in good faith for the purpose of preventing or avoiding other harm to person or property.”

हिंदी अनुवाद:
यदि कोई कार्य यह जानते हुए भी किया जाता है कि उससे हानि पहुँच सकती है, परंतु वह कार्य किसी आपराधिक इरादे से नहीं बल्कि सद्भावना से अन्य हानि को रोकने के लिए किया गया है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।

Section 19 BNS ACT
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Learn Also :- Section 18 BNS Accident in doing a lawful act.

इस धारा की मुख्य विशेषताएँ

  1. हानि की संभावना (Likelihood of Harm):
    कार्य में हानि की संभावना हो सकती है, परंतु वह हानि अनजाने में होती है।
  2. आपराधिक अभिप्राय का अभाव (Absence of Criminal Intention):
    यदि कार्य करने वाले का उद्देश्य हानि पहुँचाना नहीं है, तो अपराध सिद्ध नहीं होगा।
  3. सद्भावना का होना (Presence of Good Faith):
    कार्य करने वाला व्यक्ति यह मानता है कि उसके इस कार्य से बड़ी हानि टाली जा सकेगी।
  4. अन्य हानि से बचाव (Prevention of Greater Harm):
    यदि कार्य अन्य गंभीर या तात्कालिक हानि को रोकने के लिए किया गया है, तो वह न्यायसंगत माना जाएगा।

व्याख्या (Explanation)

Section 19 BNS यह स्पष्ट करती है कि किसी व्यक्ति का इरादा (Intention) न्यायालय के निर्णय में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। यदि कोई कार्य सद्भावना और आवश्यकता के आधार पर किया गया है, तो वह आपराधिक कृत्य नहीं माना जाएगा।

न्यायालय इस बात की जाँच करेगा कि:

  • क्या वास्तविक हानि को टालना आवश्यक था?
  • क्या परिस्थिति इतनी आपातकालीन और गंभीर थी कि जोखिम लेना न्यायसंगत था?
  • क्या कार्य करते समय लापरवाही या दुर्भावना शामिल थी?

उदाहरण (Illustrations)

उदाहरण (a) : जहाज का कप्तान

एक जहाज का कप्तान ऐसी परिस्थिति में है कि यदि वह जहाज की दिशा नहीं बदलता तो 20–30 यात्रियों वाली नाव से टकराना निश्चित है। परंतु दिशा बदलने पर दो यात्रियों वाली नाव से टकराने का खतरा हो सकता है। कप्तान यात्रियों की अधिक जान बचाने के लिए जहाज की दिशा बदल देता है।
— इस स्थिति में कप्तान दोषी नहीं है, क्योंकि उसने बड़ी हानि रोकने के लिए सद्भावना से कार्य किया।

उदाहरण (b) : आग बुझाने के लिए मकान गिराना

किसी क्षेत्र में बड़ी आग लगी है। “अ” आग फैलने से रोकने के लिए कुछ मकान गिरा देता है ताकि लोगों की जान और संपत्ति बचाई जा सके।
— यहाँ भी “अ” अपराधी नहीं है, क्योंकि उसने हानि पहुँचाने का इरादा नहीं रखा, बल्कि बड़ी हानि रोकने के लिए यह कदम उठाया।

संबंधित न्यायिक दृष्टांत (Case Law)

Pateshwari Prasad v. State of U.P. (AIR 1963 All 268)

इस मामले में न्यायालय ने कहा कि –
यदि किसी कार्य का उद्देश्य बड़ी हानि को रोकना हो और वह सद्भावना में किया गया हो, तो उस कार्य को अपराध नहीं ठहराया जा सकता।

State of Orissa v. Bhagaban Barik (AIR 1976 Ori 42)

ओडिशा उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि Section 19 BNS के अंतर्गत “Good Faith” का निर्धारण परिस्थितियों पर आधारित होगा। यदि यह सिद्ध हो जाए कि आरोपी ने जानबूझकर दुर्भावना से कार्य नहीं किया, बल्कि हानि रोकने के लिए कदम उठाया, तो उसे आपराधिक दायित्व से छूट मिलेगी।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ (Apex Court Comments)

सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में यह माना है कि –

  1. सद्भावना की कसौटी (Test of Good Faith): यह देखना आवश्यक है कि आरोपी ने उचित सावधानी और विवेक का पालन किया या नहीं।
  2. हानि की तुलना (Comparative Harm Test): अदालत इस बात की जाँच करती है कि आरोपी द्वारा की गई हानि उस हानि से कम थी, जिसे टालने के लिए उसने कदम उठाया।
  3. आपराधिक इरादे का न होना (Absence of Mens Rea): यदि Mens Rea (आपराधिक मानसिकता) सिद्ध नहीं होती, तो आरोपी दोषमुक्त हो सकता है।

Section 19 BNS बनाम अन्य धाराएँ

  • धारा 18 BNS (Accident in doing lawful act): धारा 18 में “दुर्घटना” पर जोर है, जबकि Section 19 BNS में “हानि रोकने हेतु जानबूझकर किया गया कार्य” शामिल है।
  • धारा 17 BNS (Mistake of fact): इसमें गलती से किया गया कार्य है, पर Section 19 BNS में उद्देश्य बड़ी हानि रोकना है।

Section 19 BNS का महत्व

  1. यह धारा समाज और व्यक्तियों की रक्षा के लिए एक संतुलन प्रदान करती है।
  2. यह न्यायालय को परिस्थिति अनुसार आरोपी को राहत देने की अनुमति देती है।
  3. यह सिद्ध करती है कि न्याय केवल कानून की कठोरता नहीं बल्कि मानवीय संवेदना पर भी आधारित है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q1: क्या धारा Section 19 BNS केवल संपत्ति से संबंधित है?

उत्तर: नहीं, यह व्यक्ति और संपत्ति दोनों से संबंधित हानि पर लागू होती है।

Q2: क्या “Good Faith” का प्रमाण आरोपी पर है?

उत्तर: हाँ, आरोपी को यह सिद्ध करना होगा कि उसका कार्य सद्भावना में था और उसने बड़ी हानि रोकने के लिए कदम उठाया।

Q3: यदि लापरवाही से कार्य हुआ तो क्या Section 19 BNS लागू होगी?

उत्तर: नहीं, लापरवाही या असावधानी होने पर यह धारा सुरक्षा प्रदान नहीं करती।

Q4: क्या Section 19 BNS “Self Defence” से जुड़ी है?

उत्तर: यह “Self Defence” से अलग है, परंतु दोनों में समानता यह है कि दोनों बड़ी हानि को रोकने के उद्देश्य पर आधारित हैं।

निष्कर्ष

Section 19 BNS भारतीय दंड संहिता की एक ऐसी धारा है, जो यह दर्शाती है कि न्याय केवल कृत्य (Act) पर नहीं बल्कि उसके उद्देश्य और अभिप्राय पर भी आधारित होता है। यदि कोई व्यक्ति बिना किसी आपराधिक इरादे के, सद्भावना में बड़ी हानि रोकने के लिए ऐसा कार्य करता है जिससे कुछ हानि हो जाती है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।

यह प्रावधान समाज में न्याय और मानवीय संवेदना के संतुलन को बनाए रखने का महत्वपूर्ण उदाहरण है।

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