Section 17 BNS Act done by a person justified, or by mistake of fact believing himself justified, by law.

परिचय

भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) का उद्देश्य अपराध और दंड की परिभाषा को आधुनिक, सरल और व्यवहारिक रूप देना है। Section 17 BNS का संबंध उन परिस्थितियों से है, जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को करते समय यह विश्वास करता है कि उसका कार्य कानून द्वारा उचित (justified by law) है, या फिर तथ्य की भूल (mistake of fact) के कारण यह मान बैठता है कि उसका कार्य कानून द्वारा उचित है।

इस धारा के अनुसार –

“Nothing is an offence which is done by any person who is justified by law, or who by reason of a mistake of fact and not by reason of a mistake of law in good faith, believes himself to be justified by law, in doing it.”

सरल भाषा में कहा जाए तो –
यदि कोई कार्य कानून की अनुमति से किया गया हो, या किसी व्यक्ति ने तथ्य की भूल से (और न कि विधि की भूल से) यह मान लिया हो कि वह कार्य कानून के अनुरूप है, तो उस कार्य को अपराध नहीं माना जाएगा।

Section 17 BNS
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Section 17 BNS का मुख्य सार

  1. Justified by law – कोई भी कार्य जो विधि द्वारा स्वीकृत है, अपराध नहीं है।
  2. Mistake of fact (तथ्य की भूल) – यदि कोई व्यक्ति परिस्थितियों की गलतफहमी के कारण, लेकिन सद्भावना (good faith) से कार्य करता है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
  3. Mistake of law (कानून की भूल) – यदि कोई व्यक्ति कानून की जानकारी न होने के कारण गलत कार्य करता है, तो उसे इस धारा का लाभ नहीं मिलेगा।
  4. Good faith (सद्भावना) – कार्य करते समय व्यक्ति का इरादा सही होना चाहिए।

Read it:- Section 16 BNS Act done pursuant to judgment or order of Court

Section 17 BNS का उदाहरण (Illustration)

धारा में दिया गया उदाहरण अत्यंत स्पष्ट है –

उदाहरण:
A देखता है कि Z किसी व्यक्ति की हत्या कर रहा है। A यह सोचकर कि Z अपराध कर रहा है, Z को पकड़ लेता है ताकि पुलिस को सौंप सके। बाद में यह पता चलता है कि Z वास्तव में आत्मरक्षा (self-defence) में कार्य कर रहा था।

यहाँ A ने सद्भावना और तथ्य की समझ से कार्य किया, इसलिए A का कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।

Section 17 BNS और Mistake of Fact बनाम Mistake of Law

1. Mistake of Fact (तथ्य की भूल)

  • यदि कोई व्यक्ति परिस्थितियों को गलत समझ लेता है और उसी आधार पर कार्य करता है, तो उसका कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।
  • शर्त यह है कि कार्य सद्भावना में और कानून द्वारा उचित समझते हुए किया गया हो।

उदाहरण:
किसी को चोर समझकर पुलिस को सौंपना, जबकि वह व्यक्ति निर्दोष निकले।

2. Mistake of Law (कानून की भूल)

  • यदि कोई व्यक्ति कानून को न समझ पाने या न जानने की वजह से गलत कार्य करता है, तो यह धारा उस पर लागू नहीं होगी।
  • कानून की अज्ञानता (Ignorance of law) किसी को छूट नहीं देती।

उदाहरण:
कोई व्यक्ति कहे कि उसे मालूम ही नहीं था कि चोरी अपराध है – यह बहाना मान्य नहीं होगा।

Section 17 BNS : संबंधित केस लॉ (Case Laws)

1. State of Orissa v. Bhagaban Barik (1976)

इस केस में अदालत ने कहा कि –
“यदि कोई कार्य तथ्य की भूल के कारण किया गया है और करने वाला व्यक्ति यह मानता है कि वह कानून के तहत उचित कार्य कर रहा है, तो यह अपराध नहीं होगा।”

2. R v. Tolson (1889, England)

यह एक अंग्रेजी केस है। एक महिला ने दूसरी शादी कर ली क्योंकि उसे यह विश्वास था कि उसका पहला पति मर चुका है। बाद में वह जीवित निकला। अदालत ने कहा कि यह Mistake of Fact है, इसलिए महिला को दंडित नहीं किया जा सकता।

3. Keso Sahu v. Saligram Shah (1958)

अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति सद्भावना से यह मानकर कार्य करता है कि वह कानून द्वारा उचित है, तो उसे अपराध नहीं ठहराया जा सकता।

Section 17 BNS पर टिप्पणियाँ (Comments)

  1. यह धारा व्यक्ति की मंशा और परिस्थितियों पर केंद्रित है।
  2. यह कानून की सख्ती को मानवीय संवेदना से संतुलित करती है।
  3. इससे यह सुनिश्चित होता है कि निर्दोष व्यक्ति को गलतफहमी के कारण अपराधी न ठहराया जाए।
  4. कानून और न्याय के बीच संतुलन बनाने में यह धारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

Section 17 BNS और भारतीय संविधान

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 (Article 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि किसी निर्दोष को दंडित नहीं किया जाना चाहिए
Section 17 BNS उसी सिद्धांत की व्यावहारिक अभिव्यक्ति है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q1: क्या Section 17 BNS का लाभ हर किसी को मिलेगा?

Ans:- नहीं। केवल उन्हीं व्यक्तियों को मिलेगा जिन्होंने सद्भावना से और तथ्य की भूल में कार्य किया हो।

Q2: Mistake of Law और Mistake of Fact में क्या अंतर है?

Ans:- Mistake of Fact – परिस्थितियों की गलतफहमी।
Ans:- Mistake of Law – कानून की जानकारी न होना।
Mistake of Fact को इस धारा में छूट है, लेकिन Mistake of Law को नहीं।

Q3: क्या पुलिस अधिकारी भी इस धारा का लाभ ले सकते हैं?

Ans:- हाँ, यदि उन्होंने तथ्य की गलतफहमी में सद्भावना से कोई कार्य किया हो।

Q4: क्या यह धारा आत्मरक्षा (Self-defence) से जुड़ी है?

Ans:- अप्रत्यक्ष रूप से हाँ, क्योंकि कई बार आत्मरक्षा और अपराध के बीच अंतर को लेकर भ्रम होता है।

Q5: क्या Section 17 BNS IPC (Indian Penal Code) की किसी धारा के समान है?

Ans:- हाँ, यह IPC की Section 79 से संबंधित है।

निष्कर्ष

Section 17 BNS का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि निर्दोष व्यक्ति को केवल तथ्य की गलतफहमी या सद्भावना से किए गए कार्यों के लिए अपराधी न ठहराया जाए

यह धारा कानून की मानवीय संवेदनशीलता को दर्शाती है और यह सिद्ध करती है कि न्याय केवल दंड देने तक सीमित नहीं है, बल्कि निर्दोष की रक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

इसलिए Section 17 BNS भारतीय न्याय व्यवस्था का एक संतुलित और मानवीय प्रावधान है, जो न्याय और करुणा दोनों का संरक्षण करता है।

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