प्रस्तावना of Section 15 BNS
भारत एक विधि-प्रधान देश है, जहाँ न्यायपालिका लोकतंत्र का तीसरा स्तंभ मानी जाती है। न्यायपालिका के कार्य निष्पक्ष, स्वतंत्र और न्यायोचित हों, इसके लिए आवश्यक है कि न्यायाधीश अपने निर्णय और कार्य न्यायिक शक्तियों के अंतर्गत ही करें।
इसी उद्देश्य से भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की Section 15 BNS में यह स्पष्ट किया गया है कि –
“जब कोई न्यायाधीश न्यायिक रूप से कार्य करते हुए ऐसा कोई कार्य करता है, जो कानून द्वारा उसे प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत आता है अथवा वह ऐसा करने में सद्भावना से यह विश्वास करता है कि उसे यह शक्ति कानून द्वारा प्राप्त है, तो ऐसा कोई कृत्य अपराध नहीं माना जाएगा।”
यह प्रावधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता एवं उसकी कार्यप्रणाली की सुरक्षा के लिए बनाया गया है।
Section 15 BNS का मुख्य प्रावधान
Section 15 BNS के अनुसार:
- यदि कोई न्यायाधीश न्यायिक रूप से (Judicially) कार्य कर रहा है,
- और वह कार्य कानून द्वारा प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत आता है,
- अथवा न्यायाधीश सद्भावना (Good Faith) में यह विश्वास करता है कि वह शक्ति उसे कानून द्वारा प्राप्त है,
- तो उसका किया हुआ कार्य अपराध (Offence) नहीं माना जाएगा।
Section 15 BNS का उद्देश्य
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता (Judicial Independence) की रक्षा करना।
- न्यायाधीशों को निर्णय लेते समय डर या अपराध की आशंका से मुक्त रखना।
- न्यायिक निर्णयों में निष्पक्षता और सद्भावना को बढ़ावा देना।
- न्यायपालिका पर बिना कारण आपराधिक अभियोजन (Criminal Prosecution) की रोकथाम करना।
न्यायाधीश की शक्ति और उसकी सीमाएँ
- न्यायाधीश केवल वही कार्य कर सकते हैं, जो उन्हें कानून द्वारा प्रदान किया गया है।
- यदि वे निजी स्वार्थ, दुर्भावना या दुरुपयोग करते हैं, तो यह Section 15 BNS का संरक्षण उपलब्ध नहीं होगा।
- उदाहरण:
- यदि न्यायाधीश किसी आरोपी को साक्ष्यों के आधार पर दंड देता है → अपराध नहीं।
- लेकिन यदि न्यायाधीश रिश्वत लेकर फैसला देता है → यह अपराध है, Section 15 BNS का संरक्षण नहीं मिलेगा।
संबंधित न्यायालयीन निर्णय (Case Laws)
(1) Anowar Hussain vs Ajoy Kumar Mukherjee (AIR 1965 SC 1651)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक कार्य करते समय न्यायाधीश को प्रतिरक्षा (Immunity) प्राप्त है। लेकिन यह प्रतिरक्षा केवल उसी सीमा तक है, जहाँ कार्य न्यायिक शक्तियों के अंतर्गत हो।
(2) Stump vs Sparkman (1978) US Supreme Court Case
हालाँकि यह विदेशी निर्णय है, लेकिन इसमें भी न्यायिक प्रतिरक्षा की पुष्टि हुई। कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीश के न्यायिक कार्यों को अपराध या दीवानी दायित्व में नहीं बदला जा सकता, बशर्ते वह सद्भावना से कार्य करे।
(3) Rachapudi Subba Rao vs Advocate General (AIR 1981 SC 755)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीश के न्यायिक कार्यों को चुनौती केवल अपील या पुनरीक्षण से की जा सकती है, आपराधिक दायित्व आरोपित नहीं किया जा सकता।
व्यवहारिक उदाहरण (Illustrations)
- उदाहरण 1:
एक मजिस्ट्रेट ने चोरी के आरोपी को गवाहों के बयान के आधार पर 3 साल की सजा दी।
यह न्यायिक कार्य है। न्यायाधीश पर अपराध का आरोप नहीं लगाया जा सकता। - उदाहरण 2:
एक जज ने निजी दुश्मनी के कारण आरोपी को बिना साक्ष्य के दोषी ठहरा दिया।
यह न्यायिक शक्ति का दुरुपयोग है। ऐसे मामले में Section 15 BNS का संरक्षण नहीं मिलेगा। - उदाहरण 3:
एक न्यायाधीश ने सद्भावना में यह विश्वास करके कोई आदेश पारित किया कि उसे यह शक्ति प्राप्त है, जबकि वास्तव में वह शक्ति नहीं थी।
इस स्थिति में भी न्यायाधीश पर आपराधिक अभियोजन नहीं होगा, क्योंकि उसने सद्भावना से कार्य किया।
Section 15 BNS का विश्लेषण
- यह धारा न्यायपालिका की सुरक्षा कवच (Protective Shield) है।
- न्यायिक प्रक्रिया में यदि हर निर्णय पर आपराधिक मुकदमे चलने लगें, तो न्यायाधीश निष्पक्ष रूप से कार्य नहीं कर पाएंगे।
- लेकिन यह धारा न्यायाधीशों को पूर्ण छूट नहीं देती।
- यह केवल न्यायिक कार्यों और सद्भावना से किए गए कार्यों तक सीमित है।
Section 15 BNS और संविधान का संबंध
- अनुच्छेद 50 : न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 235 : हाईकोर्ट को अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण का अधिकार देता है।
- धारा 15 BNS इन संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप न्यायाधीशों की कार्यप्रणाली को सुरक्षा प्रदान करती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. Section 15 BNS के तहत न्यायाधीश को कब प्रतिरक्षा (Immunity) मिलती है?
Ans:- जब वह न्यायिक रूप से कार्य करते हुए अपनी विधिक शक्तियों का प्रयोग करता है या सद्भावना में विश्वास करता है कि उसे शक्ति प्राप्त है।
Q2. क्या रिश्वत लेकर निर्णय देने वाले न्यायाधीश को भी Section 15 BNS का संरक्षण मिलेगा?
Ans:- नहीं। क्योंकि यह कार्य न्यायिक शक्ति का दुरुपयोग है, और इसमें सद्भावना नहीं है।
Q3. यदि न्यायाधीश से कोई तकनीकी त्रुटि हो जाए तो क्या उसे अपराध माना जाएगा?
Ans:- नहीं। सद्भावना से हुई त्रुटि अपराध नहीं है।
Q4. क्या इस धारा का दुरुपयोग हो सकता है?
Ans:- सैद्धांतिक रूप से हाँ, लेकिन उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के पास अपीलीय और पुनरीक्षण शक्तियाँ हैं जो ऐसे दुरुपयोग को रोकती हैं।
Q5. Section 15 BNS की तुलना IPC की किस धारा से की जा सकती है?
👉 यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 77 से मिलता-जुलता है।
निष्कर्ष
Section 15 BNS, 2023 न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसकी निष्पक्षता की गारंटी देती है। यह न्यायाधीशों को यह विश्वास दिलाती है कि वे निडर होकर अपने न्यायिक कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं। लेकिन यह संरक्षण केवल उसी स्थिति में मिलेगा, जब कार्य न्यायिक शक्तियों के अंतर्गत और सद्भावना से किया गया हो।
यह प्रावधान जनता के न्यायपालिका पर विश्वास को मजबूत करता है और लोकतंत्र के न्यायिक स्तंभ को सुदृढ़ बनाता है।
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