Section 12 BNS (भारतीय न्याय संहिता) – एकांत कारावास की सीमा
- 1 प्रस्तावना of Section 12 BNS
- 2 Section 12 BNS का मुख्य प्रावधान – “एकांत कारावास की सीमा”
- 3 Section 12 BNS का उद्देश्य
- 4 एकांत कारावास का ऐतिहासिक दृष्टिकोण
- 5 न्यायालयों का दृष्टिकोण (Case Laws)
- 6 एकांत कारावास की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव
- 7 Section 12 BNS और मानवाधिकार
- 8 Section 12 BNS की मुख्य विशेषताएँ (Bullet Points में)
- 9 Section 11 BNSऔर Section 12 BNS का आपसी संबंध
- 10 आलोचना और सुझाव
- 11 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- 12 निष्कर्ष
प्रस्तावना of Section 12 BNS
भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) 2023 के अंतर्गत अपराधियों के लिए दंड निर्धारण में विभिन्न प्रकार की सज़ाओं का प्रावधान किया गया है। इन सज़ाओं में से एक विशेष प्रकार की सज़ा है एकांत कारावास (Solitary Confinement)। एकांत कारावास का अर्थ है कि अपराधी को सामान्य कैदियों से अलग, पूर्णतः अकेले, अलग-थलग कर दिया जाए।
एकांत कारावास की प्रकृति कठोर मानी जाती है क्योंकि यह न केवल शारीरिक दंड है बल्कि मानसिक और भावनात्मक यातना भी है। इसलिए भारतीय विधि में इसकी सीमा (Limit) स्पष्ट रूप से निर्धारित की गई है। इसी सीमा को Section 12 BNS में विनियमित किया गया है।
Section 12 BNS का मुख्य प्रावधान – “एकांत कारावास की सीमा”
Section 12 BNS का सारांश इस प्रकार है:
- किसी भी व्यक्ति को 14 दिनों से अधिक लगातार एकांत कारावास में नहीं रखा जा सकता।
- एकांत कारावास की दो अवधियों के बीच उतने ही दिन का अंतराल होना चाहिए जितने दिन की अवधि का एकांत कारावास दिया गया है।
- यदि अपराधी को 3 महीने से अधिक का कारावास दिया गया है, तो पूरे कारावास काल में प्रति माह अधिकतम 7 दिन ही एकांत कारावास दिया जा सकता है।
- प्रत्येक अवधि के बीच पर्याप्त अंतराल आवश्यक है ताकि अपराधी की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर न पड़े।
Read it :- Section 11 BNS BHARATIYA NYAYA SANHITA, 2023 Solitary confinement.
Section 12 BNS का उद्देश्य
- अपराधी को कठोर अनुशासनात्मक वातावरण में रखना।
- अपराधी के मानसिक संतुलन को पूरी तरह न बिगाड़ना।
- मानवाधिकारों और संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा करना।
- दंड को न्यायसंगत और अनुपातिक बनाए रखना।
एकांत कारावास का ऐतिहासिक दृष्टिकोण
भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा 73 और 74 में भी एकांत कारावास का उल्लेख किया गया था। वहीं, अब नए कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने इन प्रावधानों को आधुनिक संदर्भ में रखा है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एकांत कारावास को एक कठोर सज़ा माना गया है। कई मानवाधिकार संगठनों ने इसे लंबे समय तक लागू करने को अमानवीय बताया है।
न्यायालयों का दृष्टिकोण (Case Laws)
(1) Sunil Batra v. Delhi Administration (AIR 1978 SC 1675)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एकांत कारावास केवल विशेष परिस्थितियों में और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए ही दिया जा सकता है। यह कैदी के मौलिक अधिकारों (Article 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
(2) Shatrughan Chauhan v. Union of India (2014) 3 SCC 1
इस मामले में कहा गया कि लंबे समय तक एकांत कारावास देना क्रूर और अमानवीय है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना जाएगा।
(3) Charles Sobhraj v. Superintendent, Central Jail (1978) 4 SCC 104
इस मामले में कोर्ट ने माना कि जेल प्रशासन मनमाने ढंग से कैदियों को एकांत कारावास में नहीं डाल सकता। इसके लिए वैधानिक प्रक्रिया का पालन आवश्यक है।
एकांत कारावास की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव
- मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति।
- सामाजिक अलगाव से मानवीय व्यवहार में विकृति।
- कैदियों के पुनर्वास में कठिनाई।
- मानवाधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव।
Section 12 BNS और मानवाधिकार
भारत ने संयुक्त राष्ट्र के ‘Nelson Mandela Rules’ (UN Standard Minimum Rules for the Treatment of Prisoners) को स्वीकार किया है। इनमें भी स्पष्ट कहा गया है कि लंबी अवधि तक एकांत कारावास देना अमानवीय है।
Section 12 BNS इसी भावना को भारतीय कानून में परिलक्षित करती है।
Section 12 BNS की मुख्य विशेषताएँ (Bullet Points में)
- एकांत कारावास 14 दिनों से अधिक लगातार नहीं।
- हर अवधि के बीच उतनी ही अवधि का अंतराल।
- 3 महीने से अधिक की सज़ा में, प्रति माह 7 दिन से अधिक नहीं।
- कैदी के स्वास्थ्य, मानवाधिकार और संविधान की मर्यादा का ध्यान रखा गया।
Section 11 BNSऔर Section 12 BNS का आपसी संबंध
- धारा 11 BNS में प्रावधान है कि न्यायालय अपराधी को एकांत कारावास की सज़ा सुना सकता है।
- Section 12 BNS में उसकी सीमा और नियंत्रण निर्धारित किए गए हैं।
👉 यानी, धारा 11 दंड का अधिकार देती है और Section 12 BNS उस अधिकार के दुरुपयोग को रोकती है।
आलोचना और सुझाव
कई विद्वानों का मानना है कि एकांत कारावास को पूरी तरह समाप्त कर देना चाहिए क्योंकि यह मानसिक और शारीरिक दोनों ही दृष्टि से घातक है।
वहीं, कुछ का मानना है कि सीमित उपयोग में यह एक अनुशासनात्मक उपाय के रूप में आवश्यक है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: Section 12 BNS के तहत एकांत कारावास की अधिकतम अवधि कितनी है?
उत्तर: अधिकतम 14 दिन लगातार और 3 महीने से अधिक कारावास होने पर प्रति माह 7 दिन।
प्रश्न 2: क्या न्यायालय मनमाने ढंग से एकांत कारावास की सज़ा दे सकता है?
उत्तर: नहीं, इसके लिए धारा 11 और Section 12 BNS की शर्तों का पालन करना अनिवार्य है।
प्रश्न 3: क्या एकांत कारावास मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है?
उत्तर: यदि यह उचित सीमा से अधिक और मनमाने ढंग से दिया जाए तो यह अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन माना जाएगा।
प्रश्न 4: धारा 12 BNS और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का क्या संबंध है?
उत्तर: धारा 12 BNS, “Nelson Mandela Rules” के अनुरूप है, जो लंबे समय तक solitary confinement पर रोक लगाता है।
प्रश्न 5: क्या भारत में एकांत कारावास पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जा सकता है?
उत्तर: वर्तमान में इसे पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं किया गया है, बल्कि समय और अवधि की सीमा तय की गई है।
निष्कर्ष
Section 12 BNS, भारतीय न्याय व्यवस्था में एक संतुलन बनाने का प्रयास है। यह एक ओर अपराधियों को अनुशासन में रखने का साधन प्रदान करती है, तो दूसरी ओर उनके मानवाधिकारों की भी रक्षा करती है। न्यायालयों ने भी स्पष्ट कर दिया है कि एकांत कारावास का प्रयोग केवल अपवाद (exception) के रूप में होना चाहिए, नियम (rule) के रूप में नहीं।
इस प्रकार, Section 12 BNS को मानवता और न्याय के बीच संतुलन की एक महत्वपूर्ण कड़ी माना जा सकता है।
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