Section 11 BNS BHARATIYA NYAYA SANHITA, 2023 Solitary confinement.

प्रस्तावना

भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) 2023 ने भारतीय दंड संहिता (IPC) को प्रतिस्थापित करते हुए कई प्रावधानों में बदलाव किया है। इनमें धारा 11 (Section 11 BNS) एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो “एकांत कारावास” (Solitary Confinement) से संबंधित है।

एकांत कारावास का अर्थ है – कैदी को समाज से, अन्य कैदियों से और सामान्य संपर्क से अलग कर एकांत में रखना। इसका प्रयोग केवल विशेष परिस्थितियों में और न्यायालय की अनुमति से ही किया जा सकता है।

इस लेख में हम धारा Section 11 BNS का गहन अध्ययन करेंगे, इसके प्रावधान, उद्देश्य, न्यायालयों की व्याख्या, संबंधित केस लॉ (Case Laws), और सामान्य प्रश्नों के उत्तर भी जानेंगे।

Section 11 BNS का पाठ

“Whenever any person is convicted of an offence for which under this Sanhita the Court has power to sentence him to rigorous imprisonment, the Court may, by its sentence, order that the offender shall be kept in solitary confinement for any portion or portions of the imprisonment to which he is sentenced, not exceeding three months in the whole, according to the following scale, namely:—

See also :- Section 10 BNS Punishment of person guilty of one of several offences, judgment stating that it is doubtful of which.

(a) यदि कारावास की अवधि छह महीने से अधिक न हो, तो एकांत कारावास की अधिकतम अवधि एक माह होगी।
(b) यदि कारावास की अवधि छह माह से अधिक और एक वर्ष से कम या बराबर हो, तो अधिकतम अवधि दो माह होगी।
(c) यदि कारावास की अवधि एक वर्ष से अधिक हो, तो अधिकतम अवधि तीन माह होगी।

section 11 BNS
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एकांत कारावास का उद्देश्य

  1. गंभीर अपराधों पर नियंत्रण – यह सज़ा अपराधियों को अनुशासन में रखने और अपराधों की गंभीरता को दर्शाने के लिए दी जाती है।
  2. अनुशासनात्मक साधन – जेल के भीतर कैदी यदि दुर्व्यवहार करते हैं तो उन्हें भी सीमित समय के लिए एकांत में रखा जाता है।
  3. भय और निरोध – एकांत कारावास की कठोरता भविष्य में अपराध से रोकने का साधन है।

एकांत कारावास की संवैधानिकता (Constitutionality)

भारत के संविधान में अनुच्छेद 21 (Right to Life and Personal Liberty) के तहत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। न्यायालयों ने समय-समय पर यह कहा है कि –

  • एकांत कारावास का उपयोग सिर्फ सीमित परिस्थितियों में होना चाहिए।
  • इसका प्रयोग क्रूर या अमानवीय नहीं होना चाहिए।
  • कैदी के स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है।

संबंधित न्यायालयीन निर्णय (Case Laws on Solitary Confinement)

1. Sunil Batra v. Delhi Administration (1978 AIR 1675, SC)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कैदियों को एकांत कारावास में डालना उनकी मानसिक स्वतंत्रता का हनन है, और इसे केवल न्यायालय की अनुमति से ही लागू किया जा सकता है।

2. Charles Sobhraj v. Superintendent, Central Jail (1978 AIR 1514, SC)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एकांत कारावास को अनिवार्य दंड के रूप में लागू नहीं किया जा सकता। यह कैदी के मूलभूत अधिकारों के विपरीत होगा।

3. State of Maharashtra v. Prabhakar Pandurang Sanzgiri (1966 AIR 424, SC)

इस मामले में कहा गया कि एकांत कारावास को केवल “अत्यंत आवश्यक” स्थितियों में ही लागू करना चाहिए।

4. A.K. Gopalan v. State of Madras (1950 SCR 88, SC)

न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कोई भी अंकुश कानून द्वारा ही लगाया जा सकता है।

Section 11 BNS और पूर्ववर्ती कानून (IPC vs BNS)

  • IPC की धारा 73 और 74 में एकांत कारावास का उल्लेख था।
  • अब BNS 2023 की Section 11 BNS इस प्रावधान को लेकर आई है, जिसमें अधिक स्पष्ट सीमा और न्यायालय की विवेकाधिकारिता पर ज़ोर दिया गया है।
  • नया प्रावधान कैदी के मौलिक अधिकारों को ध्यान में रखकर अधिक संतुलित बनाया गया है।

Section 11 BNS की प्रमुख विशेषताएँ

  1. केवल कठोर कारावास (Rigorous Imprisonment) में लागू।
  2. अधिकतम अवधि – तीन माह
  3. न्यायालय की अनुमति आवश्यक।
  4. स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति का ध्यान रखा जाएगा।
  5. कैदी की गरिमा और मौलिक अधिकारों का संरक्षण।

आलोचना (Criticism)

  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव।
  • लंबे समय तक अलगाव कैदी को समाज विरोधी बना सकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने इसे “अमानवीय दंड” करार दिया है।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य (International Perspective)

  • United Nations Standard Minimum Rules for the Treatment of Prisoners (Nelson Mandela Rules, 2015) के अनुसार –
    • 15 दिनों से अधिक का एकांत कारावास “Torture” माना जा सकता है।
  • भारत में अधिकतम अवधि तीन माह है, जो कि अंतरराष्ट्रीय मानकों की तुलना में अधिक कठोर मानी जा सकती है।

उपधाराएँ एवं व्याख्या (Sub-sections & Explanation)

Section 11 BNS (1) – न्यायालय का विवेकाधिकार

न्यायालय यह तय करेगा कि अपराध की प्रकृति के आधार पर एकांत कारावास उचित है या नहीं।

Section 11 BNS (2) – अवधि का निर्धारण

कैदी की सज़ा की अवधि के अनुसार एकांत कारावास की सीमा तय की गई है (1 माह, 2 माह या 3 माह)।

Section 11 BNS (3) – कैदी के अधिकारों का संरक्षण

कैदी को भोजन, स्वास्थ्य सुविधा और चिकित्सकीय देखभाल मिलनी चाहिए।

Section 11 BNS (4) – न्यायिक पुनरीक्षण

यदि कैदी को लगता है कि एकांत कारावास अवैध है, तो वह उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs on Section 11 BNS – Solitary Confinement)

Q1: Section 11 BNS के तहत अधिकतम एकांत कारावास की अवधि कितनी हो सकती है?

👉 अधिकतम तीन माह

Q2: क्या हर अपराध में एकांत कारावास दिया जा सकता है?

👉 नहीं, केवल उन्हीं अपराधों में जहाँ कठोर कारावास की सज़ा हो।

Q3: क्या एकांत कारावास मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है?

👉 यदि अनुचित ढंग से लागू किया जाए तो हाँ, लेकिन न्यायालय की अनुमति और संवैधानिक सीमाओं के भीतर यह वैध है।

Q4: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकांत कारावास की क्या स्थिति है?

👉 संयुक्त राष्ट्र के नियमों के अनुसार, लंबे समय तक एकांत कारावास मानवाधिकारों का उल्लंघन है।

Q5: क्या कैदी एकांत कारावास के आदेश को चुनौती दे सकता है?

👉 हाँ, कैदी उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।

निष्कर्ष

Section 11 BNS (एकांत कारावास) एक ऐसा प्रावधान है जो कठोर अपराधियों के लिए विशेष परिस्थिति में लागू किया जाता है। यह प्रावधान अपराधियों को अनुशासन में रखने के लिए है, लेकिन साथ ही यह कैदियों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा को भी महत्व देता है।

न्यायालयों ने समय-समय पर स्पष्ट किया है कि एकांत कारावास का उपयोग विवेकपूर्ण, न्यायसंगत और मानवीय दृष्टिकोण से ही किया जाना चाहिए।

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