Section 10 BNS Punishment of person guilty of one of several offences, judgment stating that it is doubtful of which.

प्रस्तावना

भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS) 2023, भारतीय दंड संहिता (IPC) का नया रूप है जिसे आपराधिक न्याय व्यवस्था को और अधिक सरल, प्रभावी तथा समयानुकूल बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
इस संहिता की धारा 10 (Section 10 BNS) एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो उस स्थिति से संबंधित है जब किसी व्यक्ति पर एक से अधिक अपराधों का आरोप हो और न्यायालय को यह संदेह हो कि वह वास्तव में किस अपराध का दोषी है।

कानून यह स्पष्ट करता है कि ऐसी स्थिति में आरोपी को सबसे कम दंड वाले अपराध की सजा दी जाएगी, यदि उन अपराधों में अलग-अलग दंड का प्रावधान है। यह प्रावधान न्यायिक निष्पक्षता और आरोपी के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है।

Section 10 BNS का प्रावधान

Section 10 BNS कहती है:

“जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध यह निर्णय दिया जाता है कि वह कई अपराधों में से किसी एक का दोषी है, जो निर्णय में निर्दिष्ट है, परंतु यह संदेह है कि वह वास्तव में किस अपराध का दोषी है, तो उस व्यक्ति को उस अपराध के लिए दंडित किया जाएगा, जिसके लिए सबसे कम दंड निर्धारित किया गया है, यदि सभी अपराधों के लिए समान दंड निर्धारित न हो।”

सरल शब्दों में समझें

  • यदि किसी पर हत्या, हत्या का प्रयास और गंभीर चोट पहुँचाने का आरोप है।
  • न्यायालय को यह सुनिश्चित नहीं हो पा रहा कि वह वास्तव में हत्या का दोषी है या केवल चोट पहुँचाने का।
  • ऐसे में आरोपी को सबसे कम दंड वाले अपराध की सजा दी जाएगी।
  • यह प्रावधान अन्याय से बचाव के लिए है, ताकि संदेह का लाभ आरोपी को मिले।

See this :- Section 9 BNS Limit of punishment of offence made up of several offences.

Section 10 BNS का उद्देश्य

  1. न्यायिक निष्पक्षता – यदि दोष सिद्धि में संदेह हो तो आरोपी को सबसे कम दंड दिया जाए।
  2. संदेह का लाभ आरोपी को – आपराधिक न्याय प्रणाली का यह मूल सिद्धांत है कि “सौ दोषी छूट जाएं, पर एक निर्दोष को दंड न मिले।”
  3. दंड का संतुलन – यह सुनिश्चित करना कि किसी को ऐसे अपराध की सजा न मिले जिसका दोष सिद्ध न हुआ हो।

Section 10 BNS बनाम धारा 72 IPC

पुरानी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 72 और नई BNS की Section 10 BNS लगभग समान प्रावधान रखती हैं।

  • IPC धारा 72: यदि किसी अपराधी पर एक से अधिक अपराधों का आरोप हो और यह संदेह हो कि वह किस अपराध का दोषी है, तो उसे न्यूनतम दंड वाले अपराध की सजा मिलेगी।
  • Section 10 BNS: उसी प्रावधान को और अधिक स्पष्ट और आधुनिक भाषा में दोहराया गया है।

संबंधित न्यायिक निर्णय (Case Laws)

1. Kedarnath v. State of Bihar, AIR 1962 SC 955

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब अपराध की प्रकृति को लेकर संदेह हो, तो न्यायालय को आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए न्यूनतम दंड वाले अपराध की सजा देनी चाहिए।

2. R v. Prince (1875)

अंग्रेजी न्याय प्रणाली में भी यह सिद्धांत मान्य है कि यदि अपराध की सटीक श्रेणी पर संदेह हो तो न्यायालय कठोर दंड नहीं देगा।

3. State of Rajasthan v. Kashi Ram (2006) 12 SCC 254

सुप्रीम कोर्ट ने कहा – यदि सबूतों में अस्पष्टता है और अपराध स्पष्ट सिद्ध नहीं होता, तो आरोपी को कठोर सजा नहीं दी जा सकती।

4. Bhikari v. State of U.P., AIR 1966 SC 1

कोर्ट ने माना कि यदि किसी व्यक्ति पर हत्या या हत्या का प्रयास – दोनों आरोप हों, और प्रमाण अस्पष्ट हों, तो उसे सबसे कम दंड वाले अपराध के तहत सजा दी जानी चाहिए।

व्यावहारिक उदाहरण

मान लीजिए –

  1. किसी पर हत्या (Section 101 BNS) और गंभीर चोट पहुँचाने (Section 115 BNS) का आरोप है।
  2. हत्या के लिए अधिकतम दंड मृत्युदंड/आजीवन कारावास है, जबकि गंभीर चोट के लिए 10 वर्ष तक की सजा हो सकती है।
  3. यदि यह संदेह हो कि आरोपी ने हत्या की या केवल चोट पहुँचाई, तो उसे गंभीर चोट वाले अपराध की सजा दी जाएगी।

Section 10 BNS का महत्व

  1. यह न्यायपालिका को निष्पक्ष और संतुलित निर्णय देने का आधार प्रदान करता है।
  2. आरोपी को यह सुरक्षा मिलती है कि संदेह की स्थिति में उसे कठोरतम सजा नहीं दी जाएगी।
  3. यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की रक्षा करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

प्रश्न 1: Section 10 BNS का मुख्य उद्देश्य क्या है?

उत्तर: इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि किसी व्यक्ति पर कई अपराधों का आरोप हो और यह संदेह हो कि वह किस अपराध का दोषी है, तो उसे सबसे कम दंड वाले अपराध की सजा दी जाए।

प्रश्न 2: क्या यह प्रावधान IPC में भी था?

उत्तर: हाँ, यह प्रावधान IPC की धारा 72 में था और BNS की Section 10 BNS ने उसे ही आगे बढ़ाया है।

प्रश्न 3: यदि सभी अपराधों के लिए समान सजा हो तो क्या होगा?

उत्तर: ऐसी स्थिति में आरोपी को वही सजा मिलेगी जो उस अपराध के लिए निर्धारित है, क्योंकि सभी अपराधों की सजा समान है।

प्रश्न 4: Section 10 BNS में “संदेह का लाभ” क्यों दिया जाता है?

उत्तर: आपराधिक न्याय प्रणाली का मूल सिद्धांत है कि आरोपी को संदेह का लाभ मिले, ताकि निर्दोष व्यक्ति को कठोर सजा न दी जाए।

प्रश्न 5: क्या Section 10 BNS केवल गंभीर अपराधों पर लागू होती है?

उत्तर: नहीं, यह किसी भी अपराध की स्थिति में लागू होती है, जहाँ एक से अधिक अपराधों में संदेह हो।

निष्कर्ष

Section 10 BNS (Section 10 Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में संतुलन और न्याय सुनिश्चित करने का एक अहम प्रावधान है। यह सुनिश्चित करता है कि यदि किसी अपराध के बारे में संदेह हो, तो आरोपी को कठोरतम सजा नहीं दी जाएगी बल्कि सबसे कम दंड वाले अपराध की सजा दी जाएगी।

यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाता है और आरोपी के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।

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